बाल विकास और अवस्थाएँ (Child Development and Stages) in Hindi
बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत विकासात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए गर्भावस्था से लेकर युवावस्था व परिपक्वावस्था तक के मानव व्यवहार को बाल विकास कहते हैं |वातावरण में मानव का अपना अलग महत्व होता हैं मानव जीवन में होने वाले परिवर्तनों का क्रम ही विकास कहलाता है।
बाल विकास को चार भागों में विभाजित किया गया है -
- वृद्धि (Growth)
- विकास (Development)
- विकास की अवस्थाएँ ं(Stages of Development )
- विकास के सिद्धांत (Principle of Development)
1 बालक की वृद्धि ( Child Growth)-
बालक में होने वाले वह परिवर्तन जो देख सकते है उसे वृद्धि कहते है |
- वृद्धि मात्रात्मक होती है |
- वृद्धि एक दिशीय होती है |
- वृद्धि एक समय सीमा तक ही होती है |
- वृद्धि मूर्त रूप में होती है |
2 बालक का विकास ( Child Development)-
- विकास गुणात्मक होता है |
- विकास चहुँमुखी होता है |
- विकास जीवन पर्यन्त चलता है |
- विकास अमूर्त रूप में होता है |
3 बाल विकास की अवस्थाएँ (Stages of Child Development)-
बाल विकास की अवस्थाओं को कई चरणों में बांटा गया है -
- गर्भावस्था (Pregnancy)- 9 माह
- शैशवावस्था (Infancy) - जन्म से 2 या 3 वर्ष तक
- बाल्यावस्था (Childhood) ---(i ) पूर्वबाल्यावस्था - 3 से 6 वर्ष
(ii) उत्तरबाल्यावस्था - 6 से 12 वर्ष तक
- किशोरावस्था (Adolescence)- 18 से 19 वर्ष तक
- प्रौढ़ावस्था (Adulthood)- 19 वर्ष से ऊपर की आयु
( i ) शैशवावस्था (Infancy)- शैशवास्था की प्रमुख बातें इसप्रकार है -
- यह खिलौनों की अवस्था है |
- जीवन की प्रारंभिक अवस्था है |
- इसमें शारीरिक वृद्धि में तीव्रता होती है |
- इसमें दोहराने की प्रवृति होती है |
- नैतिकता का आभाव रहता है |
- अंतर्मुखी व्यक्तित्व की भावना |
- नार्सीसिज्म (स्वप्रेम ) की भावना |
वैलेंटाइन के अनुसार -"शैशवावस्था सीखने का आदर्शकाल है |"
फ्रायड के अनुसार -"शैशवावस्था में काम भावना की प्रबलता होती है |"
(ii)बाल्यावस्था(Childhood) - बाल्यावस्था की विषेशताएँ -
- यह विद्यालयी अवस्था है |
- मूर्त चिंतन की अवस्था है |
- जिज्ञासा की प्रबलता होती है |
- वास्तविक जगत से सम्बन्ध होता है |
- बहिर्मुखी व्यक्तित्व होता है |
रॉस के अनुसार -"इसे मिथ्या परिपक्वता की अवस्था कहा जाता है|"
फ्रायड के अनुसार -"यह अवस्था जीवन का निर्माणकारी काल है |"
(iii ) किशोरावस्था (Adolescence)- किशोरावस्था की कुछ विषेशताएँ -
- जीवन का सर्वाधिक कठिनकाल |
- समाज सेवा की भावना |
- अमूर्त (काल्पनिक ) चिंतन की भावना|
- चरित्र निर्माण का काल|
- दिवास्वपन की प्रवृति |
रॉस के अनुसार - "किशोरावस्था , शैशवास्था की पुनरावृति होती है | "
बाल विकास के सिद्धांत(Principle of Child Development) -
मनोविज्ञान के अनुसार बाल विकास के कुछ सिद्धांत होते है -
- निरंतरता का सिद्धांत - बाल विकास जीवन भर होता है |
- विकास की दर सामान नहीं होती- यद्यपि विकास बराबर होता है लेकिन विकास की दर समान नहीं होती है |
- विकास सामान्य से विशेष की ओर - जन्म के समय लगभग सभी एक जैसे होते है लेकिन समय के साथ भिन्नता आती हैं |
- विकास की दिशा मस्तकाधोन्मुखी होती है - यानी विकास की दिशा सिर से पैर की ओर होती है |
- विकास का निकट-दूर का सिद्धांत - विकास का क्रम केन्द्र से प्रारम्भ होकर परिधि की ओर होता है | केंद्र(रीढ़ ) की हड्डी से शुरू होता है |
- विकास का वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धांत - सभी में व्यक्तिगत भिन्नता होती है |
- विकास लंबवत न होकर होकर वर्तुलाकार होता है -
- सामान प्रतिमान का सिद्धांत -एक ही प्रजाति के विकास में समानता पायी जाती है |
- परस्पर अन्तर्सम्बन्ध का सिद्धांत - सभी अंग एक दुसरे से जुड़े होते है |
उपरोक्त विवेचन के अनुसार बाल विकास(Child Development and Pedagogy) का महत्व बालक के जीवन में बहुत है | बालक को उचित परामर्श दिया जा सकता है |
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