रस प्रकार, उदाहरण, Hindi Grammar
रस का शाब्दिक अर्थ - ' आनन्द आना '
'रस' शब्द का अर्थ है आनंद या भावनात्मक अनुभूति। भारतीय काव्यशास्त्र में रस का महत्वपूर्ण स्थान है। रस सिद्धांत के अनुसार, जब पाठक या श्रोता किसी कविता, नाटक या साहित्यिक रचना को पढ़ते या सुनते हैं, तो उनके मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें रस कहा जाता है।
रस सिद्धांत के प्रवर्तक भरतमुनि हैं, जिन्होंने इसे अपने ग्रंथ "नाट्यशास्त्र" में प्रतिपादित किया। बाद में आचार्य आनंदवर्धन और आचार्य भामह ने भी इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया।
रस के अवयव या अंग -
- स्थायी भाव - 9
- विभाव - 2
- अनुभाव - 8
- संचारी /व्यभिचारी भाव - 33
रस तथा उनके स्थायी भाव -
रस स्थायी भाव
श्रंगार रस - रति /प्रेम
हास्य रस - हास
करुण रस - शोक
वीर रस - उत्साह
रौद्र रस - क्रोध
शान्त रस - निर्वेद
वात्सल्य रस - वत्सल
वीभत्स रस - घृणा
अद्भुत रस - आश्चर्य / विस्मय
श्रंगार रस -
नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस की अवस्था में पहुँच जाता है तो वह श्रंगार रस कहलाता है|
श्रृंगार रस को रसराज कहां जाता है |
इसका स्थाई भाव रति होता है |
इसके अंतर्गत नायिका अलंकार, सुंदर प्रकृति, सुंदरवन, वसंत ऋतु, पक्षियों का वर्णन किया जाता है |
श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं -
हमारे संयोग श्रृंगार रस और वियोग श्रृंगार रस
उदाहरण - बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय |
सोह करैं मौहनि हँसे, दैन कहे नति जाए ||
स्थाई भाव रति आलंबन कृष्ण आसरा गोपियां उद्दीपन बतरस लालच अनुभव बांसुरी छू पाना हंसना मना करना संचारी भाव हर्ष उत्साह उत्सुकता चपलता आदि
हास्य रस
जहां कि नहीं विचित्र स्थितियां या परिस्थितियों के कारण हास्य की उत्पत्ति होती है उसे ही हास्य रस कहा जाता है |
इसका स्थाई भाव हास होता है |
इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि के व्यक्ति को देख कर मन में विनोद का भाव उत्पन्न होता है |
करुण रस
इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग से उत्पन्न दुख को करुण रस कहते हैं |
इसका स्थाई भाव शौक होता है |
जहां पर पुनः मिलने की आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है |
उदाहरण - सीता गई तुम भी चले,मैं भी ना जिऊंगा यहाँ |
सुग्रीव बोले साथ में सब जाएंगे वानर वहां | |
वीर रस -
जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं |
इसका स्थाई भाव उत्साह होता है |
इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने यश प्राप्त करना आदि प्रकट होता है |
उदाहरण - वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं |
वह खून कहो किस मतलब का, जिसमे जीवन में रवानी नहीं | |
रौद्र रस -
जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष या व्यक्ति का अपमान करने से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं |
इसका स्थाई भाव क्रोध होता है |
इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, शस्त्र चलाना, भौहें चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं |
उदाहरण - उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा |
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा | |
शांत रस -
इस रस में तत्व ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर शांति मिलती है वहां शांत रस की उत्पत्ति होती है |
इसका स्थाई भाव निर्वेद या विरक्ति होती है |
वात्सल्य रस -
माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्यों के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव पर पुष्ट परी पोस्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है |
इसका स्थाई भाव वात्सल्यता होता है |
उदाहरण - उठो लाल अब आंखे खोलो |
पानी लाई मुँह को धोलो | |
भक्ति रस -
इस रस में ईश्वर की अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है अर्थात जिस काव्य में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है भक्ति रस कहलाता है |
इसका स्थाई भाव देव रति होता है |
रस का महत्व -
- साहित्य का हृदय: रस ही साहित्य की आत्मा है। इसके बिना कविता या नाटक नीरस हो जाएगा।
- भावनात्मक जुड़ाव: रस पाठक और श्रोता को रचना से जोड़ता है और उन्हें भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है।
- सांस्कृतिक प्रभाव: भारतीय नाट्य, कविता और कथा साहित्य में रस का विशेष स्थान है।
- मानव मनोविज्ञान से संबंध: रस सिद्धांत हमारे जीवन के विभिन्न भावों को समझने में मदद करता है।
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