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Theory of Moral Development of Kohlberg (कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत), In Hindi

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत (Theory of Moral Development of Kohlberg)

Theory of Moral Development of Kohlberg (कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत), In Hindi

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत

लॉरेंस कोहलबर्ग (Lawrence Kohlberg) एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने नैतिक विकास (Moral Development) के सिद्धांत को प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत जीन  पियाजे (Jean Piaget) के संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) सिद्धांत पर आधारित है और यह बताता है कि व्यक्ति का नैतिक विकास विभिन्न चरणों (stages) में होता है। कोहलबर्ग ने नैतिक विकास को तीन स्तरों (Levels) और छह चरणों (Stages) में विभाजित किया।

कोहलबर्ग के नैतिक विकास के तीन स्तर और छह चरण -

1. पूर्व-परंपरागत स्तर (Pre-conventional Level) - 4 से 10 वर्ष 

यह स्तर मुख्य रूप से बचपन के प्रारंभिक वर्षों में देखा जाता है, जब बच्चे नैतिकता को दंड और इनाम के संदर्भ में समझते हैं।

(i) दंड और आज्ञापालन अभिविन्यास (Obedience and Punishment Orientation)

  • इस चरण में नैतिकता का आधार दंड (punishment) से बचना होता है।
  • बच्चे सही और गलत का निर्णय इस आधार पर लेते हैं कि किसी कार्य के लिए उन्हें दंड मिलेगा या नहीं।
  • उदाहरण: यदि बच्चा झूठ बोलने पर दंडित होता है, तो वह झूठ बोलने को गलत मानने लगता है।

(ii) व्यक्तिगत हित अभिविन्यास (Self-Interest Orientation)

  • इस चरण में व्यक्ति अपने स्वार्थ को ध्यान में रखकर नैतिक निर्णय लेता है।
  • "यदि मैं तुम्हारी मदद करूँगा, तो तुम मेरी मदद करोगे" जैसी सोच विकसित होती है।
  • इस चरण को "लेन-देन की नैतिकता" (Instrumental Morality) भी कहा जाता है।

2. पारंपरिक स्तर (Conventional Level) - 10 से 13 वर्ष

यह स्तर किशोरावस्था और वयस्कता के दौरान विकसित होता है, जब व्यक्ति समाज के नियमों और अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए नैतिक निर्णय लेता है।

(i) आपसी अपेक्षा और संबंध अभिविन्यास (Interpersonal Accord and Conformity Orientation)

  • इस चरण में व्यक्ति नैतिक निर्णय इस आधार पर लेता है कि समाज उसे अच्छा या बुरा मानता है।
  • "अच्छा लड़का/अच्छी लड़की" बनने की प्रवृत्ति होती है।
  • नैतिकता का आधार पारिवारिक और सामाजिक संबंधों पर होता है।

(ii) विधि और व्यवस्था अभिविन्यास (Law and Order Orientation)

  • इस चरण में नैतिक निर्णय कानून और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने पर आधारित होते हैं।
  • लोग मानते हैं कि कानून और सामाजिक नियमों का पालन करना अनिवार्य है, चाहे व्यक्तिगत इच्छाएँ कुछ भी हों।
  • उदाहरण: यातायात नियमों का पालन इसलिए किया जाता है क्योंकि वे समाज के लिए आवश्यक हैं।

3. उत्तर-परंपरागत स्तर (Post-conventional Level)- 15 वर्ष से ऊपर

यह स्तर नैतिक विकास का उच्चतम स्तर होता है, जिसमें व्यक्ति अपने स्वयं के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेता है।

(i) सामाजिक अनुबंध अभिविन्यास (Social Contract Orientation)

  • इस चरण में लोग समझते हैं कि कानून और सामाजिक नियम आवश्यक हैं, लेकिन वे बदले भी जा सकते हैं यदि वे समाज के भले के लिए न हों।
  • व्यक्ति यह मानता है कि कुछ अधिकार और स्वतंत्रताएँ सभी को मिलनी चाहिए, भले ही कानून कुछ और कहें।
  • उदाहरण: महात्मा गांधी का ब्रिटिश कानूनों का अहिंसात्मक विरोध।

(ii) सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत अभिविन्यास (Universal Ethical Principles Orientation)

  • यह चरण बहुत कम लोगों में विकसित होता है।
  • इसमें व्यक्ति अपने सिद्धांतों के आधार पर नैतिक निर्णय लेता है, भले ही वे कानूनों या सामाजिक मान्यताओं के विपरीत हों।
  • इस स्तर के लोग मानवाधिकार, न्याय और नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं।
  • उदाहरण: नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे नेता जो समानता और न्याय के लिए खड़े हुए।

महत्व और आलोचना -

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत शिक्षा, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि व्यक्ति का नैतिकता का बोध कैसे विकसित होता है। हालांकि, इस सिद्धांत की कुछ आलोचनाएँ भी हैं:

  • सांस्कृतिक भेदभाव – यह सिद्धांत मुख्य रूप से पश्चिमी संस्कृति पर आधारित है और इसे अन्य संस्कृतियों में पूरी तरह लागू करना कठिन हो सकता है।
  • लैंगिक पक्षपात – कैरोल गिलिगन (Carol Gilligan) ने इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा कि यह महिलाओं की नैतिक सोच को पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाता।
  • व्यवहार और कार्य में अंतर – केवल नैतिक विचारधारा विकसित होने का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति उसी के अनुसार कार्य भी करेगा।

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